संविधान विरोधी, सांप्रदायिक वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ आरवाईए का देशव्यापी प्रतिवाद मार्च
- ryahqofficial
- Apr 6
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वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ इंकलाबी नौजवान सभा (आरवाईए) ने देशव्यापी प्रतिवाद दिवस मनाया, जिसके तहत देश के अलग-अलग हिस्सों में जोरदार प्रतिवाद मार्च आयोजित किए गए। इन आंदोलनों में छात्र-युवा, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और नागरिकों की बड़ी भागीदारी देखने को मिली।
आरवाईए नेताओं ने मोदी सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत किया गया वक़्फ़ संशोधन विधेयक को न केवल मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व पर सीधा हमला बताया बल्कि इसे भारत के संवैधानिक ढांचे, धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विरुद्ध एक सुनियोजित राजनीतिक साज़िश का हिस्सा करार दिया।

आरवाईए के राष्ट्रीय अध्यक्ष आफताब आलम ने मुजफ्फरपुर में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह विधेयक भाजपा-आरएसएस के उस दीर्घकालिक फासीवादी एजेंडे का हिस्सा है, जिसके तहत भारत को एक बहुसांस्कृतिक, बहुधार्मिक लोकतंत्र से बदलकर एक सांप्रदायिक, बहुसंख्यकवादी राष्ट्र में तब्दील करने की कोशिश की जा रही है। यह विधेयक वक़्फ़ बोर्डों की स्वायत्तता को समाप्त करने का प्रयास है और गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक़्फ़ बोर्ड में शामिल करने की साजिश दरअसल एक साम्प्रदायिक हस्तक्षेप है, जो संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के खिलाफ है। वक़्फ़ सम्पत्तियाँ, जो मुस्लिम समुदाय की धार्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हैं, उनके प्रबंधन में गैर-मुस्लिम सदस्यों की घुसपैठ एक सोची-समझी रणनीति है, जिससे समुदाय को उसकी ही विरासत से बेदखल किया जा सके। यह पूंजीवादी लूट और बहुसंख्यकवादी ध्रुवीकरण की राजनीति का खतरनाक संगम है। यह विधेयक बिना किसी लोकतांत्रिक विमर्श, सार्वजनिक परामर्श या संबंधित पक्षों से राय लिए बगैर संसद में लाया गया। न वक़्फ़ परिषद से कोई संवाद, न राज्य वक़्फ़ बोर्डों से कोई विमर्श, न मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों से कोई बातचीत. यह सब इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि मौजूदा शासन लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सिर्फ एक औपचारिकता मानता है, जबकि असल में वह जनविरोधी और साम्प्रदायिक मंशाओं से संचालित हो रहा है।

गोपालगंज में प्रदर्शन को संबोधित करते हुए बिहार प्रदेश अध्यक्ष जितेंद्र पासवान ने कहा कि बिना लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के बावजूद भाजपा ने इस विधेयक को जेडीयू जैसे सहयोगी दलों के सहारे पारित करवा लिया नीतीश कुमार और उनकी पार्टी का यह समर्थन न सिर्फ बिहार की गंगा-जमुनी तहज़ीब के साथ धोखा है, बल्कि यह राज्य के अल्पसंख्यक समुदायों के साथ भी एक ऐतिहासिक विश्वासघात है। उन्होंने जेडीयू के इस अवसरवादी रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि बिहार की जनता इस राजनीति को कभी माफ नहीं करेगी। इसका जवाब सड़कों से लेकर विधानसभाओं तक दिया जाएगा। इस विधेयक के पीछे केवल सांप्रदायिक मंशा ही नहीं, बल्कि पूंजीवादी लूट का भी गहरा षड्यंत्र छिपा है। पूरे देश में वक़्फ़ की कई संपत्तियाँ हैं, जिन पर सरकार और कारपोरेट गठजोड़ की निगाहें गड़ी हुई हैं। पहले ही सरकार द्वारा वक़्फ़ संपत्तियों को अधिग्रहित कर मॉल, हवाई अड्डे और कॉरपोरेट प्रोजेक्ट्स बनाए जा रहे हैं। अब इस विधेयक के जरिए उस प्रक्रिया को वैधानिक वैधता दी जा रही है, ताकि अल्पसंख्यकों की सामूहिक संपत्तियों को कारपोरेटों के हवाले किया जा सके। यह विधेयक केवल संपत्ति का मुद्दा नहीं है, यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का भी एक औजार है। भाजपा-आरएसएस यह अच्छी तरह जानते हैं कि मुस्लिम समुदाय की स्वायत्त संस्थाओं को कमजोर कर के वे न केवल धार्मिक-शैक्षणिक गतिविधियों को बाधित कर सकते हैं, बल्कि अल्पसंख्यकों की सामूहिक चेतना को भी कुंद कर सकते हैं। इसी उद्देश्य से वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की बात की जा रही है, जिससे साम्प्रदायिक टकराव पैदा हो और वक़्फ़ बोर्डों को सरकार के अधीन कर दिया जाए।

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