कोइलवर: सरकार ने फोरलेन हाईवे बनाने के लिए तोड़ा स्कूल, स्कूली बच्चों-ग्रामीणों-नौजवानों ने चलाया सड़क पर स्कूल!
क्या है सड़क पर स्कूल आंदोलन:
पिछले कुछ वर्षों में बिहार में "सड़क पर स्कूल" आंदोलन बहुत पॉपुलर हुआ और काफी चर्चा में रहा। इस आंदोलन की शुरुआत बिहार के भोजपुर जिले के अगिआंव ब्लाक से हुई। यह आंदोलन ग्रामीण गरीबों में अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की प्रबल चाहत को चैम्पियन कर रहा है। 2016 में इस आंदोलन की शुरुआत भोजपुर जिले के अगिआंव गांव से हुआ, जहां सैकड़ों स्कूली लड़के-लड़कियां अपने माँ-बाप के साथ आरा- सहार स्टेट हाईवे को सुबह से शाम तक जाम कर पढ़ाई की। इस आंदोलन ने नारा दिया 'जब परिस्थितियां नहीं होगी अनुकूल तो सड़क पर चलेगा स्कूल' ।
आंदोलन की शुरुआत:
इंक़लाबी नौजवान सभा (आरवाईए) के तत्कालीन राज्य अध्यक्ष मनोज मंज़िल (अब ये अगिआंव विधानसभा के माले से विधायक हैं और आरवाईए के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं) ने ग्रामीण नौजवानों की एक टीम के साथ अगिआंव पंचायत के स्कूल की जांच पड़ताल की जिसमें बड़े पैमाने पर जरूरी संसाधनों का अभाव जैसे क्लासरूम की कमी, शिक्षकों की कमी, शौचालय व पीने के पानी का अभाव, समय से किताबें नहीं मिलना, स्कूल के जमीन पर दबंगों का कब्ज़ा आदि पाया गया।
इन समस्याओं को लेकर पहले संबंधित अधिकारियों से मिला गया लेकिन अधिकारियों के द्वारा इसे समस्या के रूप में चिन्हित भी नहीं किया गया बल्कि इसे छोटी बात बता कर टालने की कोशिश की गई। फिर टीम ने स्कूल में दाखिल सभी बच्चों व माता-पिता से घर-घर जाकर मुलाकात की। इस सवाल पर बच्चों के माता-पिता के अन्दर पहले से ही गुस्सा भरा हुआ था। गांव की बैठकों ने आंदोलन करने का फैसला किया। आंदोलन का दिन तय हुआ, सुबह-सुबह स्कूल खुलने के समय पर स्कूली बच्चें अपने माता-पिता के साथ दोपहर का खाना लेकर पहुंचे, स्कूल की घंटी बजी और शुरू हुआ सड़क पर स्कूल. हाइवे पर स्कूल लगने के 8 घंटे बाद जिला मुख्यालय से अधिकारीयों की टीम आई, आन्दोलन ने अपनी मांग रखी और समय सीमा के अन्दर उसे पूरा भी किया गया. शिक्षा के सवाल पर यह काफी प्रभावी व लोकप्रिय आन्दोलन साबित हुआ और भोजपुर जिले के कई प्रखंडों में यह आन्दोलन हुआ और इसके तहत अपनी मांगें पूरी करवाई गई.
कोइलवर का आन्दोलन:
भोजपुर जिला मुख्यालय से लगा हुआ नगर पंचायत है कोइलवर. सोन नदी के किनारे स्थित इस गाँव के तारामणि भगवान साहू प्लस टू स्कूल के बीचो-बीच जनवरी 2019 में फोरलेन हाइवे का निर्माण किया गया. हाइवे बनाने के लिए लगभग डेढ़ एकड़ में फैले जिले के इस प्रतिष्ठित स्कूल को तोड़ दिया गया. दो हजार बच्चों वाला यह स्कूल आज के समय में भी जहाँ सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता कम हुई है, तब भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए जाना जाता था. इस स्कूल में ना सिर्फ कोइलवर बल्कि आस-पास के कई गाँव से भी बच्चे पढ़ने आते थे.
स्कूल को ध्वस्त करके बनाए गए हाइवे व पुलिया का उद्घाटन करने के लिए बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री, स्थानीय संसद आर. के. सिंह, और डीएम सहित कई नेता और आला-अधिकारी पहुंचे और धूम-धाम से उद्घाटन हुआ.
उस वक़्त आरवाइए और भाकपा-माले के नेतृत्व में जुलूस निकाल कर इसका विरोध कर स्कूल का पुनर्निर्माण की मांग की तो तत्कालीन जिलाधिकारी ने वादा किया कि स्कूल बनाने के लिए एक सप्ताह में काम शुरू करवाएंगे और छः महीने में इसे पूरा कर देंगे। ढाई साल तक स्कूल के बच्चे व ग्रामीण इंतजार करते रहे लेकिन किसी भी तरह की कोई सरकारी पहल नजर नहीं आई. साल दर साल बीतता गए, बच्चे दाखिल होते गए, पास करते गए, लेकिन ना स्कूल बना ना कक्षाएं शुरू हुई तो ग्रामीणों ने आन्दोलन का मन बनाया और इंक़लाबी नौजवान सभा (अआर्वाइए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व अगिआंव से भाकपा माले विधायक मनोज मंजिल व आरवाइए की टीम से सम्पर्क किया.
आरवाइए ने इसे गंभीरता से लिया और कोइलवर के तमाम समुदायों के मुहल्लों में छात्र-छात्राओं सहित अभिभावकों के साथ बैठक किया. इसी दौरान छात्र-छात्राओं और अभिभावकों के साथ आरवाइए का एक प्रतिनिधिमंडल एसडीएम व जिलाधिकारी से मुलाकात किया. इस मुलाकात में भी पहले की तरह आश्वासन ही मिला. प्रतिनिधिमंडल ने तात्कालिक तौर पर कक्षाएं शुरू करने के लिए अस्थाई क्लासरूम बनवाने की मांग की. महीना भर इंतजार के बाद भी जमीन नापने के अलावे स्कूल के लिए कुछ नहीं हुआ तो आरवाइए ने राष्ट्रीय अध्यक्ष व विधायक मनोज मंजिल के नेतृत्व में गांव-गांव में अभियान चलाते हुए 1 सितंबर को ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन शुरू करने की योजना बनाई.
हाईवे पर चला स्कूल :
स्कूल का सीना चीर कर जिस हाईवे को गाड़ियों के सरपट दौड़ने के लिए बनाया गया उसी पर टेंट लगा कर 1 सितंबर को लग गया स्कूल. सरपट भागने वाली गाड़ियों की रफ़्तार थम गई और हजारों बच्चे व उनके माता-पिता पहुँच गए स्कूल. घंटी बजी, बच्चों ने राष्ट्रगान गाया व क्लास शुरू हुई. आन्दोलनकारियों ने बीमार लोगों और अम्बुलेंस को निकलने की व्यवस्था कर रखी थी.
पहले पुलिस बल के साथ डी एस पी आए, बच्चों ने यह कहते हुए बाहर कर दिया की अभी हमारी क्लास चल रही है आप पूछ कर आईए. इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में छात्राओं ने भाग लिया. स्कूल चलता रहा. दोपहर बाद जिले भर के पुलिस बल को आंदोलनस्थल पर बुला लिया गया और आन्दोलनकारियों की हटाने की कोशिश करने लगे. लेकिन पुलिस का प्रयास उल्टा पड़ गया और आन्दोलनकारियों की संख्या बढ़ने लगी. आन्दोलनकारियों के आक्रामक तेवर के सामने पुलिस बल को अपना इरादा बदलना पड़ा और वार्ता का रास्ता लेना पड़ा. रात के 9 बजे एसडीएम, एडीएम और डीईओ सहित जिला प्रशासन आन्दोलनस्थल पर पहुंचा. लगभग एक घंटे तक आन्दोलनकारियों से वार्ता हुई. स्कूल बनाने के लिए डेढ़ एकड़ जमीन और एक करोड़ रुपया आवंटित करने का वादा किया गया. साथ ही 12 दिन के अंदर अस्थायी क्लास रूम बनाने के लिए 7 लाख रुपया आवंटित किया गया. मांग मानने के बाद आन्दोलन ख़त्म करने का फैसला किया गया. आन्दोलन ख़त्म होने के तुरंत बाद ही मोहम्मद फ़िरोज़ जिन्होंने टेंट लगाया था, को गिरफ्तार कर लिया गया और साथ ही साथ मनोज मंजिल सहित 400 के अधिक आन्दोलनकारियों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया. देर रात तक लोगों को इसकी खबर मिली. अगले ही सुबह बच्चों- अभिभावकों ने स्थानीय थाने को घेर लिया. मुकदमें वापस लेने व टेंट वाले मो. फिरोज को छोड़ने की मांग की गई. आन्दोलन ने नया मोड़ ले लिया. बड़ी गोलबंदी होने लगी. आन्दोलन जारी रहा. 3 सितंबर को दोपहर बाद मो. फिरोज को रिहा किया गया. मुक़दमे भी वापस लेने को प्रशासन तैयार हुई और आन्दोलन ख़त्म किया गया. विधायक मनोज मंजिल व आरवाइए के स्थानीय कार्यकर्ताओं के देख-रेख में निर्माण कार्य चल रहा है. वर्षों से बंद पड़ी कक्षाएं फिर से शुरू हुई.
यह आन्दोलन बिहार की नितीश सरकार जो शिक्षा को बेहतर करने का दावा करते रहती है, के प्राथमिकता का भी पर्दाफाश करता है. सरकार के लिए स्कूल की ज्यादा जरूरत है या स्कूल तोड़कर फोरलेन सड़क बनाने की?
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