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रोजगार के नाम पर 5000रु. का इंटर्नशिप बेरोजगारी का दंश झेल रहे नौजवानों के साथ भद्दा मज़ाक


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा गत 23 जुलाई को पेश किया गया केंद्रीय बजट 2024 से यह साफ जाहिर होता है कि सरकार के पास लगातार बढ़ती बेरोजगारी को कम करने का कोई तरकीब नहीं है।

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट (2023-24) में कहा गया है कि देश को बेरोजगारी से निपटने के लिए अर्थव्यवस्था को गैर-कृषि क्षेत्र में सालाना लगभग 78.51 लाख नौकरियां पैदा करने की जरूरत है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा पेश किये गये वार्षिक बजट को उस संदर्भ में देखेँ तो लगातार बेरोजगारी में बढ़ोतरी से इनकार और रोजगार के आंकड़ों में हेराफेरी करने वाली सरकार, अब इंटर्नशिप के जरिए रोजगार पैदा करने के विचार को बढ़ावा देने की कोशिश कर युवाओं को झांसा दे रही है। मोदी सरकार निजी कंपनियों को शिक्षित युवाओं को 5000रु. प्रतिमाह के वेतन पर इंटर्नशिप देने के लिए प्रोत्साहित कर कमजोर तबके के लोगों के शोषण को बढ़ावा दे रही है। इस असुरक्षित और कम वेतन वाले काम को वास्तविक रोजगार के अवसर के बतौर पेश कर सरकार युवाओं को गुमराह कर रही है। बजट में न तो सरकारी क्षेत्र में नौकरियां बढ़ाने का और  न ही निजी क्षेत्र में सम्मानजनक रोजगार के अवसरों का विस्तार पक्का करने के लिए कोई नीतिगत निर्णय लिया गया है। यह 5000रु. का इंटर्नशिप कोई मौका नहीं बल्कि सालों से बेरोजगारी की मार झेल रहे देश के पढ़े-लिखे नौजवानों के दुर्दशा का मज़ाक बनाना है।

इस बजट में कौशल विकास पर ध्यान देने की बात की गई है। मोदी सरकार में कौशल विकास पर ध्यान देना कोई नई बात नहीं है। पहले 2.4 मिलियन युवाओं को विभिन्न व्यावसायिक कौशल में प्रशिक्षित करने के लिए “प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना” नाम से एक नई योजना लाई गई थी। लेकिन वह योजना बुरी तरह से फेल साबित हुई। यह मूल रूप से एक ऐसी योजना थी जिसमें अलग – अलग योजनाओं को एक साथ जोड़कर एक नया नाम दिया गया था। यह योजना सही तरीके से काम कर रही है या नहीं इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। आधिकारिक वेबसाइट डेटा का दावा है इस योजना के माध्यम से प्रशिक्षित 54% प्रशिक्षुओं को काम दिया गया। जबकि वास्तविक डेटा से पता चलता है कि कुल 12,454,858 उम्मीदवारों में से 11,041,125 उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया और केवल 2,451,517 उम्मीदवारों को नौकरी दी गई, यानी केवल 22.2% को नौकरी मिली।

 

बेरोजगारी का वास्तविक समाधान सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में निवेश कर रोजगार के अवसर पैदा करके और रेलवे, सर्वजिनक क्षेत्र समेत बाकी केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में 9.64 लाख नौकरियों के खाली पड़े पदों को भरने से होगा लेकिन सरकार के पास न इसका कोई प्लान है और न ही इरादा। रोजगार को प्रोत्साहित करने के नाम पर चार साल के लिए ईपीएफओ अंशदान को प्रोत्साहन देने का वादा किया गया है। जॉब कार्ड के लिए आवेदन बढ़ने के बावजूद मनरेगा पर खर्च को नहीं बढ़ाया गया है।

हम देखते हैं कि सरकार द्वारा NEP जैसी पॉलिसी लाकर उच्च शिक्षा पर लगातार हमला किया जा रहा है और यह बजट में भी साफ तौर पर देखने को मिलता है। जब नीट जैसी परीक्षाओं में घोटाले और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा परीक्षाओं को सही तरीके से आयोजित करने में भारी विफलता के खिलाफ बड़े पैमाने पर छात्र – नौजवान सड़कों पर हैं, ऐसे समय में इस बजट में इस परीक्षा प्रणाली को सुधारने का कोई बात नहीं किया गया है। बजट में विश्वविधालय आयोग के आवंटन में कटौती की गई है जिसका असर उच्च शिक्षा पर पड़ेगा। समाज के वंचित वर्गों के विशाल तबके के लिए सुलभ सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को सुधारने की अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने के बजाय, मोदी सरकार ने बजट में शिक्षा ऋण को प्रोत्साहित कर रही है। ऐसे समय में जब छात्रों और युवाओं द्वारा आत्महत्या बढ़ रही है, सरकार ने छात्रों के लिए शिक्षा ऋण माफ करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में बढ़ती महंगाई और कम होती मजदूरी की कठोर वास्तविकता को भी दरकिनार कर दिया है। मध्यम वर्ग में सालाना 3 से 10 लाख रुपये कमाने वालों के लिए मामूली कर लाभ के रूप में छूट दे सिर्फ मदद का दिखावा किया गया है। अप्रत्यक्ष करदाताओं की बड़ी तादाद को बिना किसी रियायत के छोड़ दिया गया है।

सरकार को नौजवानों के सम्मानजनक रोजगार जैसे वास्तविक मुद्दों के समाधान पर जोर देना चाहिए।



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