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मोबाइल रिचार्ज के बढ़े हुए दाम और आम जनता पर इसका प्रभाव

देश के लिए जुलाई 2024 बहुत ही महत्वपूर्ण परिघटना के लिए याद किया जाएगा। 01 जुलाई 2024 को तीन नए कानून में बदलाव करके अभिव्यक्ति पर हमला बोला और मोबाइल कंपनियों ने भी सुर में सुर मिला दिया। 03 जुलाई को एक साथ सभी मोबाइल कंपनियों ने अपने टैरिफ का दाम बेतहाशा  बढ़ाकर यह साबित कर दिया कि कॉर्पोरेट के फैसले संगठित तरीके से लिए जाएंगे ताकि जनता पर इसका बोझ डाला जा सके। यही वह कंपनियां है जो कभी प्रतिस्पर्धा के नाम पर मुफ्त में कॉल का ऑफर दिया करती थी। आज जब कई कंपनियां ध्वस्त हो गई है तब इनका मोनोपोली साफ-साफ नजर आ रहा है और सरकार है कि दूर खड़ी तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं कर रही है।  सभी टेलीकॉम कंपनियों के मोबाइल टैरिफ हाइक फैसले से स्मार्टफोन यूजर्स खासा नाराज हैं।  मोदी सरकार ने रिलायंस जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया को बिना किसी विनियमन के टैरिफ हाइक की परमिशन दी। इसी कड़ी में मोबाइल टैरिफ हाइक (Mobile Tariff Hike) को लेकर सरकार ने कहा कि टेलीकम्युनिकेशन सर्विस के रेट्स मार्केट फोर्स के साथ तय होते हैं। यह रेट्स स्वतंत्र नियामक यानी भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India) द्वारा अधिसूचित नियामक ढांचे के भीतर तय होते हैं। सरकार का कहना है कि वह फ्री मार्केट के फैसलों को लेकर कोई हस्तक्षेप नहीं करती है क्योंकि यह कार्यक्षमता ट्राई के अधिकार क्षेत्र में है। मोबाइल सर्विस के टैरिफ को लेकर होने वाले किसी भी बदलाव को लेकर टेलीकॉम ऑपरेट ट्राई को पहले ही जानकारी दे देते हैं। ट्राई निगरानी रखता है कि ऐसे बदलाव निर्धारित नियामक ढांचे के भीतर हों।

3 जुलाई 2024, से देश में प्राइवेट टेलीकॉम ऑपरेटर्स ने मोबाइल रिचार्ज प्लान की कीमतें बढ़ा दी हैं। इस फैसले के बाद जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया के मोबाइल रिचार्ज प्लान करीब 20 फीसदी तक महंगे हो गए हैं।

सभी टेलीकॉम कंपनियों की ओर से अचानक लिए गए इस फैसले से स्मार्टफोन यूजर्स खासा नाराज हैं। हालांकि, कंपनियों ने अपने ग्राहकों को पहले ही इस बारे में जानकारी देने के साथ उन्हें एडवांस रिचार्ज का ऑप्शन दिया था।

सरकार को लेकर भी दावा किया जा रहा था कि भारत सरकार ने रिलायंस जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया को बिना किसी विनियमन के टैरिफ हाइक की परमिशन दी। इसी कड़ी में मोबाइल टैरिफ हाइक (Mobile Tariff Hike) को लेकर सरकार की ओर से स्थिति साफ की गई।

 सरकारी कंपनी बीएसएनएल आज बर्बादी के कगार पर क्यों आ गई है या कहें कि सरकारी सेवाएं देने वाली कम्पनियां या सस्थाएं क्यों बर्बाद हो रही हैं?

बीएसएनएल को सरकारों की नासमझी ने न उबरने दिया। 4जी टेक्निक सबसे पहले इन्ही को देनी थी क्योंकि इनके पास सबसे अधिक टावर और फाइबर लाइन थी लेकिन इनको न देकर निजी कंपनियों को दे दिया गया। अभी भी जब दुनिया 5जी पर जा रही है इनको 4जी भी नही दिया जा रहा है। 1 लाख 64 हजार करोड का पैकेज दिया जा रहा है लेकिन पता नही यह पैसा कहाँ खर्च होगा।

सरकार समझती है कि बीएसएनल के कस्टमर तो सरकारी कर्मचारी है या सरकारी आफिस है या दूर दराज और सीमावर्ती क्षेत्र के लोग जिनको निजी कम्पनी कम दर पर सुविधा प्रदान करेगी नही। इस लिए सरकार अपनी शर्तों पर ही इसको चलाती है और दोष दे दिया जाता है कि कर्मचारी कार्य नही करते या स्टाफ बहुत कम है।

सरकार खुद नही चाहती कि सरकारी कम्पनी आगे बढ़े और निजी क्षेत्र को बढ़ावा देती है क्योंकि फिर इनके पार्टी फण्ड को पैसा कौन देगा।

सरकारी क्षेत्र के उद्यमों के लिये सबसे बड़ी समस्या यही है कि इनको सरकार समय पर नई तकनीकी बढ़ाने के लिये सहायता नही देती। चूंकि इन सरकारी कम्पनियों को देश हित और वंचित लोगों के हित मे चलाना भी मजबूरी है यह बात इनको बाद में समझ मे आता है और फिर जब मर्ज नासूर बन जाता है तो उसके लिये भारी भरकम सहायता देती है लेकिन इलाज फिर भी पूरा नही हो पाता।

 केंद्र सरकार की कैबिनेट ने BSNL के पुनरुद्धार के लिए 1.64 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया है. इस बात की जानकारी केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साझा की है. उन्होंने कहा कि बीएसएनएल सरकारी गारंटी वाले बॉन्ड जारी करने की मंजूरी के साथ ही बॉन्ड गारंटी फीस माफी का भी फैसला लिया गया है.इसके साथ ही BSNL/MTNL डेट रीस्ट्रक्चरिंग प्रस्ताव को भी अपनी मंजूरी दे दी है। गौरतलब है कि दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल अभी तक जिले से ब्लॉक तक का नेटवर्क प्रबंधित करती है, जबकि ब्लॉक से पंचायत तक का नेटवर्क भारत ब्रॉडबैंड निगम लिमिटेड (BBNL) प्रबंधित करता है।

आम जनता सरकारी सेवा से परेशान होती है वह सरकारी कर्मचारी को कोसती है कि सेवा नही दे रहा है। जनता क्या जाने की वह कर्मचारी भी इसलिये सेवा नही दे पा रहा है कि  उसके पास खुद लाइन को सही करने, कनेक्टविटी को ठीक करने के लिये स्टॉक में समान ही नही है। किसी को हथियार चलाने के लिये देंगे नही और लड़ने भेज देंगे तो वह व्यक्ति लड़ेगा कैसे। यही सरकारी कर्मचारी की विडंबना है। हम सरकारी संस्थाओं को लाख दोष दे लेकिन अभी भी वंचित वर्ग को यही उपक्रम कम दर पर सुविधा दे रहे हैं। भारत मध्यम दर्जे के लोगों से ही नही चलता। देश मे 60 प्रतिशत से ऊपर गरीब समाज है जिसको मजबूरी में नेट का रिचार्ज करना पड़ता है, जबकि वह उसका उपयोग नहीं कर पाता उसको तो सिर्फ बात करनी है। उसकी समस्या सरकार को समझना होगा। अरबो रुपए खर्च करके शाही शादी बना देने से देश आगे नहीं बढ़ेगा इसके लिए कॉर्पोरेट परस्त नीतियों को छोड़कर जनता के हित को आगे बढ़ाना जरूरी है इसके लिए हमें संगठित आवाज उठाना होगा।

2010 में कर्मचारियों की संख्या 292100 थी, इसमें 53790 अनुसूचित जाति और 14985 जन जाति के कामगार थे, महिला कर्मचारियो की संख्या 40208 थी व 1 लाख सर्विस सेंटर पर 3 लोगों का प्रति सेंटर स्टाफ था, वर्तमान समय में कुल संख्या 57861 है। उक्त जानकारी देते हुए ऑल इंडिया सेंट्रल कौंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) उत्तर प्रदेश के राज्य अध्यक्ष कॉमरेड विजय विद्रोही बताते हैं कि पिछले साल 850000 बीएसएनएल के कर्मचारियों को वीआरएस( वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम) दे दिया गया जो वीआरएस नहीं सीआरएस (कंपल्सरी रिटायरमेंट स्कीम) था। उन्होंने बताया कि लगभग 3:30 लाख पर बीएसएनएल में रिक्त है। इन पदों को भरा जाए तो आज ही भटक रहे नौजवानों को रोजगार दिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि बीएसएनल का टाटा के साथ बातचीत चल रही है जो बीएसएनल को पूरी तरह से निजीकरण कर देने की साजिश है। उन्होंने कहा कि सरकार बीएसएनल को आर्थिक मदद दे और रिक्त पदों को तत्काल भरे तथा सरकार निजी कंपनियों पर लगाम लगाए तभी इसको बचाया जा सकता है।

- सुनील मौर्या

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