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मोदी जी, मुद्दा मत भटकाओ, रोजगार कहाँ है ये बतलाओ’ की गूँज लिए देश भर से आए युवाओं ने दिल्ली की सड़कों पर लगाया “यूथ पार्लियामेंट”. 


मोदी जी, मुद्दा मत भटकाओ, रोजगार कहाँ है ये बतलाओ’ की गूँज लिए देश भर से आए युवाओं ने दिल्ली की सड़कों पर लगाया “यूथ पार्लियामेंट”. 

 
मोदी जी, मुद्दा मत भटकाओ, रोजगार कहाँ है ये बतलाओ’ की गूँज लिए देश भर से आए युवाओं ने दिल्ली की सड़कों पर लगाया “यूथ पार्लियामेंट”. 

देशभर में “संगठित हो, हल्ला बोल” अभियान के माध्यम से सघन संवाद व संपर्क अभियान चलाकर सैकड़ों नौजवानों ने दिल्ली पहुँच कर रोजगार के सवाल पर निर्णायक लड़ाई का किया ऐलान.   
यूथ पार्लियामेंट की शुरूआत बिहार से आए साथी राजू रंजन, झारखण्ड से आए आरपी वर्मा और महाराष्ट्र से शरद संसारे, ज्ञानेश्वरी आयवले और मदीना शेख द्वारा जनगीत की प्रस्तुति से हुआ. 

यूथ पार्लियामेंट में अलग-अलग राज्यों से नौजवानों की आवाज लेकर दिल्ली पहुंचे आन्दोलन के नेताओं ने समस्याओं को रखा. उत्तरप्रदेश से सुनील मौर्या, बिहार से शिवप्रकाश रंजन, असम से कुंती तांती, झारखण्ड से संदीप जयसवाल व दिव्या भगत, महाराष्ट्र से जीवन सुरुड़े, रेलवे ग्रुप डी बी2 सी1 के चयनित अभ्यर्थी आन्दोलन के नेता रमण सिंह बदौलिया, कार्बी आंग्लोंग से जिबो फन्ग्चो, बिहार से रेलवे ग्रुप डी आन्दोलन के नेता तारिक अनवर, तमिलनाडु से सुन्दरराज, हरियाणा से गुरप्रीत रतिया, पंजाब से विंडर अलख ने नौजवानों की समस्याओं से सदन को अवगत कराया.   

नौजवानों की समस्या सुनने के बाद यूथ पार्लियामेंट को संबोधित करते हुए भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि आज देश के नौजवानों के सामने जो सबसे ज्वलंत मुद्दा है उस मुद्दे को लेकर आपने यहाँ युवा संसद बुलाई है. तमाम राज्यों से हमारे साथियों ने अपने-अपने राज्यों की स्थिति के बारे में यहाँ जानकारी दी. देश में अभी सबसे बड़ा सवाल नौजवानों के सामने रोजगार का है और यह अचानक नहीं हुआ, कई सालों से यह मुद्दा बना हुआ है. अगर हम याद करें तो 2018 में भी बिलकुल ऐसा ही माहौल बना हुआ था देश के नौजवान रोजगार के सवाल पर सड़क पर थे, देश के किसान कर्जा मुक्ति के सवाल पर व फसल की कीमत की मांग को लेकर सड़क पर थे. ऐसे तमाम मुद्दे को लेकर देश के लोग सड़क पर थे लेकिन हमने देखा कि 2019 का जो चुनाव हुआ उससे पहले पुलवामा कांड हुआ और माहौल बदल गया. मुद्दे को भटकाने का काम हुआ इसका परिणाम हम सबके सामने है. इसलिए आपने इस संकट को सही चिन्हित किया है कि हमें मुद्दा भटकाने की उनकी कोशिश पर भी सावधान रहना होगा. अभी हमने सुना रेलवे के साथी बता रहे थे उन्होंने नौकरी के लिए परीक्षा पास की, फिर भी उन्हें ज्वाइनिंग नहीं मिल रही है. इसके लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है. इसलिए रोज़गार की जो लड़ाई है यह तो जैसे हमारी क्रांति एक लंबी लड़ाई है, तो रोज़गार की लड़ाई भी अब हिंदुस्तान में इतनी लंबी लड़ाई बन गई है. इस लम्बे समय में हमारे सामने कई पंचायत है, कई राज्य सरकार है, कई केंद्र की सरकार है और अलग-अलग पार्टियों की भी सरकार है. अभी भी इस देश में कुछ जगह विपक्षी सरकारें भी हैं और हम देख रहे हैं कि रोज़गार के सवाल नौजवानों के सामने जब आता है तो कहीं-कहीं नौजवानों के सामने कोई दूसरी सरकार भी खड़ी है. यह लड़ाई बड़ी है, व्यापक है और इसलिए आपके सामने यह सवाल भी है. इस लड़ाई को जब हम लड़ेंगे तो आंख मूँद करके नहीं लड़ सकते. खुले दिमाग, खुले आंखों के साथ इस लड़ाई को हम लड़ेंगे क्योंकि हमारा जो रोजगार छीना जा रहा है तो कोई वैकल्पिक रोज़गार पैदा करके. अब वह रोज़गार क्या है? देश की खेती चौपट हो गई लेकिन नफरत की खेती जोरों पर है, कल-कारखाना बंद हो गया है लेकिन यह कत्ल करने के लिए- हिंसा के लिए एक बिल्कुल एक नई इंडस्ट्री खोल दी है. तो यह जो नौजवान जिनको यहां खेती में, पढ़ाई में, स्कूल में, अस्पतालों में, थानों में, दफ्तरों में रोज़गार नहीं मिल रहा है, उनको इन लोगों ने वैकल्पिक रोज़गार दे दिया कि तुम हाथ में बंदूक उठाओ और रामनवमी के जुलूस में चलो और वहां जाकर के नारे लगाओ, दंगा करो और यही तुम्हारा रोज़गार है. इसलिए जो नफरत का कारोबार है, इस कारोबार को अगर हम बंद नहीं कर पाएंगे तो हम जो सम्मानजनक रोजगार की बात करते हैं, सुरक्षित रोज़गार और सम्मानजनक वेतन की बात कर रहे हैं, वह नहीं बनने वाला. इसीलिए यह नफरत के कारोबार को बंद करना, नफरत के रोज़गार को बंद करना, यह भी हमारे लिए बिल्कुल ज़रूरी है और बिल्कुल ज़रूरी यह भी है कि मुद्दा भटकाने का मौका इनको ना मिले.

उत्तरप्रदेश में अभी हमने देखा बरेली में वहां के एसपी कावड़ियों के उत्पात के खिलाफ कानून के हिसाब से कार्रवाई की तो उनका तबादला कर दिया गया. वहीँ दूसरी तरफ ट्रेन में आरपीएफ का जवान जिसकी जिम्मेदारी है यात्रियों के सुरक्षा की गारंटी करना, वह जवान पहले अपने एक अधिकारी को गोली मारा फिर ट्रेन के अलग-अलग कम्पार्टमेंट में जाकर चुन-चुन कर मुसलमान यात्रियों को मारा और वह बोल भी रहा था कि इस देश में अगर रहना है तो दो लोग है मोदी और योगी उसे ही वोट करना होगा. इस मामले को सरकार ने यह कह कर रफा-दफा करने की कोशिश की वो टेंशन और डीप्रेशन में था. 

तीन महीने से मणिपुर जल रहा है, सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, साठ हजार से ज्यादा लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं जो जन सहयोग से ही चल रहे हैं सरकार का उसमें कोई सहयोग नहीं है. ऐसे मसले पर सरकार संसद में बात करना नहीं चाह रही है. लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेदारी जिन पर है वो लोकतंत्र को बर्बर कर रहे हैं इसलिए हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. हमें सजग रहना होगा सावधान रहना होगा.

हम आपसे अपील करेंगे कि आप जब लौट कर अपने-अपने गाँव मोहल्ले में जायेंगे तो आस-पास के भी नौजवानों को भी सतर्क करेंगे और अपनी गोलबंदी को बढ़ाएंगे. आगे आने वाले दिनों में जो भटके हुए नौजवान हैं उनको भी अपने साथ लाएंगे. आपके सामने जो आरक्षण का सवाल है, जाति जनगणना का सवाल है उसे भी आगे ले जाना है उस पर लड़ना है ताकि पूरा का पूरा हक मिल सके. 

वो देश पर नया पुलवामा भी थोपने की कोशिश करेंगे, इसलिए हमें सावधान रहना होगा. आप जो लाल झंडे के साथ भगत सिंह- अम्बेडकर का नारा लेकर मशाल जला कर लिए आगे बढ़ रहे हैं हमें पूरी उम्मीद है आप आगे बढ़ते रहेंगे. हमें आप पर पूरा भरोसा है आप इस यूथ पार्लियामेंट के सन्देश लेकर गाँव-गाँव में जाएँगे. आप अपनी जिम्मेदारी जरूर निभाएँगे. खुद भी सजग रहें और आस-पास के नौजवानों को भी सजग करें जिन्हें भाजपा-आरएसएस वाले कभी रामनवमी के नाम पर तो अभी अन्य धार्मिक आयोजनों के नाम पर नफरती बनाने का काम करते हैं. नौजवानों को भटकाकर देश के किसानों के खिलाफ, महिलाओं के खिलाफ, ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ताओं के लिखाफ खड़ा करने की कोशिश को भी नाकाम करेंगे. 

नौजवान आन्दोलन की शुरुआत करने करने वाले साथी चंद्रशेखर, जेल में बंद साथी उमर खालिद सहित भीमा कोरेगांव के फर्जी मामले में बंद तमाम साथियों को लाल सलाम.  

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर, DUTA की पूर्व अध्यक्ष नंदिता नारायण ने यूथ पार्लियामेंट को संबोधित करते हुए कहा कि आज देश के कोने-कोने में इस तरह के नौजवानों के आन्दोलन की जरूरत है क्योंकि आज जो लोग सत्ता में बैठे हुए हैं वो देश के खिलाफ काम कर रहे हैं. यह सरकार खून-खराबा कर सत्ता पर काबिज रहना चाहती है. इसको INDIA से दिक्कत है क्योंकि इनका इतिहास ही इंडिया के खिलाफ अंग्रेजों की सेवा करने का है. शायद इसलिए इनके मुंह से सबसे पहला नाम ईस्ट इंडिया कंपनी का आया, यह उनके दिल के सबसे करीब है. यह सरकार नई शिक्षा नीति लाकर देश की शिक्षा व्यवस्था को तबाह करना चाहती है और सांप्रदायिक बनाना चाहती है. किसान तबाही से गुजर रहे हैं, स्वास्थ्य की जिम्मेदारी से सरकार अपने को अलग कर रही है, मंहगाई आसमान छू रही है. कोई आम नागरिक पचास हजार का भी लोन ले तो उनकी संपत्ति नीलाम कर ली जाती है लेकिन इनके दुलारे पूंजीपति हजारों करोड़ का चुना लगा गए तो इनको कोई फर्क नहीं पड़ता. आज जरूरत इस बात का है की ऐसे आंदोलनों को तेज किया जाय और इस सरकार को सत्ता से बाहर किया जाय. 

यूथ पार्लियामेंट को संबोधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रतन लाल ने कहा कि मोदी सरकार के अगर यही अच्छे दिन हैं तो हमें पुराने दिन ही लौटा दो. पुराने दिनों में कम से कम रोजगार तो मिलता था. आज देश में दलितों-आदिवासियों पर अत्याचार इतने बढ़ गए हैं कि कभी-कभी तो लगता है इतना अत्याचार तो इंदिरा के इमरजेंसी के समय में भी नहीं हुआ था. यह अघोषित आपातकाल बहुत खतरनाक है. लोगों ने संविधान के हिसाब से देश चलाने का मेंडेट दिया था लेकिन आज क्या हो रहा है? इंडियन रिपब्लिक पर भाजपा-आरएसएस का कब्ज़ा हो गया है, संवैधानिक संस्थाओं पर कब्ज़ा हो गया है. कोई भी संस्था संविधान के अनुरूप काम नहीं कर रही. विश्वविद्यालयों का हाल तो जेल जैसा हो गया है. आप विश्वविद्यालय में भी एक कॉलेज से दुसरे कॉलेज में नहीं जा सकते हैं. भाजपा से जुडी हुई प्रिंसिपल है मेरे कॉलेज में, उन्होंने मेरा प्रमोशन रोका हुआ है क्योंकि मैं दलित हूँ. लेकिन मैं डरने वाला नहीं हूँ, अंतिम हदों तक लड़ाई को लडूंगा. विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को टॉर्चर किया जा रहा है. झूठे आरोप लगा कर आत्महत्या करने को मजबूर किया जा रहा है. लड़ाई को तेज करने की जरूरत है और इस सरकार को बाहर करना समय की मांग है तभी देश में कुछ भी बच पाएगा.  

आइसा के राष्ट्रीय महासचिव व भाकपा माले के बिहार से विधायक संदीप सौरभ ने कहा कि इस देश का संकट यह है कि जिनको केवल शाखा चलाना चाहिए था वो आज देश चला रहे हैं, मानो ऐसा हो गया है कि बन्दर के हाथ में उस्तरा. 9 साल के मोदी सरकार की नीतियों के चलते आज देश तबाही के कगार पर पहुँच गया है. मोदी जी देश के छोटे-मोटे उद्योग धंधों को बंद करके अपने प्यारे पूंजीपतियों को मुनाफा पहुँचाने में लगे हुए हैं. सरकार ने सरकारी नौकरियों को ख़त्म करके आरक्षण को ख़त्म करने का मन बना लिया है. जो भी थोड़ी बहुत नौकरी होगी वो प्राइवेट के हाथों होगी ताकि दलित पिछड़े आदिवासी इससे बाहर रहें. आज नौजवानों के खिलाफ बड़ी साजिश की जा रही है, उन्हें समझाने की कोशिश की जा रही है कि आपके लिए रोजगार कोई मुद्दा नहीं है बल्कि हिन्दू धर्म खतरे में है, उसे बचाना जरूरी है. ग्रेजुएशन के कोर्स को चार साल का कर दिया गया है जो विद्यार्थियों को शिक्षा से बेदखल करने का एक रास्ता है. सरकार देश के नौजवानों को देशी-विदेशी पूंजी के लिए सस्ता मजदूर बनाना चाह रही है. नौजवानों को इन साजिश केखिलाफ संगठित होना और आन्दोलन करना ही एक मात्र रास्ता है.  

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जितेंद्र मीणा ने कहा कि रोजगार के जिस सवाल पर यह सरकार चुन कर आई, सत्ता में आने के बाद इसे भुला दिया गया. हर साल दो करोड़ नौजवानों को रोजगार देने का वादा कर सत्ता में आई सरकार नौजवानों से रोजगार छीनने में लगी हुई है. साथ ही साथ रोजगार के सवाल को मीडिया से भी गायब कर दिया गया है देश में जब दलितों-पिछड़ों-आदिवासियों की बात की जाती है तो कहा जाता है कि हिन्दू खतरे में है; रोजगार मांगने पर कहा जाता है कि पाकिस्तान में टमाटर मंहगा है. आर्मी की भर्तियों को डायल्युट कर दिया गया. एक काम जो देश में लगातार जारी है वो है नफरत की खेती जिसका परिणाम हम पिछले तीन महीने से मणिपुर को जलते हुए देख रहे हैं. रेलवे में यात्री सुरक्षित नहीं हैं, सुरक्षा करने वाला ही हत्या कर रहा है. संसद से एक बिल पास कराया गया जिसका नाम है वन संरक्षण अधिनियम 2023 जिसके तहत सरकार जब चाहे आदिवासियों की जमीन अपने कब्जे में ले सकती है. यह बिल आदिवासियों की जमीन छीनने वाला बिल है. इस सरकार से अब देश के लोगों की कोई उम्मीद नहीं बची है. इसलिए इसे बदलकर ही देश को बचाया जा सकता है.   

भाकपा माले के बिहार से युवा विधायक अजित कुशवाहा ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूरे देश पर नफरत उन्माद थोप देना चाहती है. आज देश की संसद में लोगों के सवालों पर बात नहीं करना चाह रही है, ऐसे में नौजवानों को सड़कों पर लड़ाई के लिए खड़ा हो जाना चाहिए. मणिपुर को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है, सरकार इस पर बात करना भी मुनासिब नहीं समझ रही है. इन आग लगाने वालों से आग बुझाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. हमें ऐसे सरकार को बदल देना चाहिए. देश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है. आज देश की सच्चाई यह हो गई है कि अगर ज्यादती का कोई विडियो जब तक वायरल नहीं होगा तब तक फआईआर भी दर्ज नहीं होगा. 2024 में देश में चुनाव होना है, अभी से नौजवानों को कमर कस कर मैदान में उतर जाना होगा. वो हमें बाँटने की कोशिश करेंगे, हमें दंगा फसाद में उलझाने की कोशिश करेंगे. हमें इनके नफरत के एजेंडे से सावधान रहते हुए मुकाबला करना होगा.   

सामाजिक कार्यकर्त्ता बनोज्योत्सना ने कहा कि सड़कों के आन्दोलन जिंदा रहने से देश का लोकतंत्र भी जिंदा रहता है. आप सड़कों पर लड़ रहे हैं इससे हम जैसे लोगों को भी हिम्मत मिलती है. ऐसे समय में आपकी लड़ाई और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब सरकार ही लोकतंत्र और संविधान को ध्वस्त करने में लगी हो. देश के लोगों ने अपने खून-पसीने से इस देश और जम्हूरियत को बनाया है. आज हिंदुस्तान का आईडिया ही खतरे में है. देश में नफरत का ऐसा माहौल बना दिया गया है की पुलिस वाले ही ट्रेन में चुन-चुन कर मुसलमानों को गोली मार रहे हैं. हत्यारे के बारे में आसानी से कह दिया जाता है कि वो पागल था. सीएए के आन्दोलन के समय में भी ऐसा ही कुछ हुआ था. इसलिए आज देश में लोकतंत्र-संविधान व भाईचारे को बचाने की जरूरत है और इसे बचाने के लिए इस तरह की लड़ाई जरूरी है. 

आरवाईए के राष्ट्रीय अध्यक्ष आफताब आलम ने कहा कि ऐसे समय में यह यूथ पार्लियामेंट हो रहा है जब यह कहा जा रहा है कि देश में अगर रहना है तो मोदी-योगी कहना होगा. लोगों के दिमाग में नफरत का जहर इस कद्र भर दिया गया है कि पुलिस भी चलती ट्रेन में मुसलमानों पर गोलियां चला रही है. रोजगार देने का वादा करके आए थे लेकिन सत्ता में आने के बाद नफरत का रोजगार बाँट रहे हैं. मणिपुर जल रहा है, महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है, लाखों लोग बेघर हैं लेकिन सरकार इस सवाल पर मौन है. मणिपुर जल रहा है पर सरकार व मीडिया चुप है लेकिन सीमा हैदर पर टीवी दिन-रात लगा हुआ है. देश के नौजवानों को अब उठ खड़ा होना होगा. देश को बचाने के लिए आगे आना होगा. 

‘यूथ पार्लियामेंट’ को संबोधित करते हुए आरवाईए के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार ने कहा कि आज देश भर से नौजवानों की आवाज लेकर हम दिल्ली में संसद के सामने नौजवानों की संसद लगा रहे हैं क्योंकि देश की संसद ने नौजवानों के भविष्य और रोजगार के बारे में बात करना बंद कर दिया है. 2 करोड़ हर साल रोजगार का वादा कर सत्ता में आई मोदी सरकार में थोड़ी भी हिम्मत है तो पिछले नौ सालों में कितने नौजवानों को रोजगार मिला इसपर श्वेत पत्र लाए. संसद में एक सवाल का जबाव देते हुए सरकार ने खुद स्वीकार किया कि 8 साल में मात्र 7.2 लाख रोजगार ही सरकार दे पाई है जबकि 22 करोड़ नौजवानों ने इसके लिए आवेदन किया था. नौजवानों को रोजगार देने की इस सच्चाई के बीच प्रधानमंत्री मोदी ‘रोजगार मेला’ लगा कर कुछ हजार नियुक्ति-पत्र बाँट कर गोदी मीडिया के माध्यम से रोजगार देने का ढोंग कर रहे हैं. प्रधानमंत्री द्वारा जितने नियुक्ति पत्र बांटे गए वह संख्या खाली पड़े पदों का महज 15 प्रतिशत भी नहीं है. अपनी इस नाकामी को छुपाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी डाकिया का काम कर रहे हैं, ज्वाइनिंग लेटर बाँट रहे हैं. 

मणिपुर के नौजवानों ने रोजगार व प्रदेश की तरक्की के लिए भाजपा को चुना था लेकिन आज उन नौजवानों के हाथों में बन्दूक थमा कर आपस में ही भिड़ा दिया गया है. तीन महीने से मणिपुर जल रहा है और सरकार तमाशा देख रही है, इस पर बात करना भी उचित नहीं समझ रही है.  

हम रोजगार के जिन अवसरों के दम पर रोजगार पाने का सपना देखते हैं आज उन्हीं अवसरों को अपने दुलारे पूँजीपतियों के हाथों नीलाम किया जा रहा है. रेलवे, जो हर साल 30-40 हजार नौजवानों को रोजगार देता था, को बेचा जा रहा है. रेलवे सहित तमाम सरकारी संस्थानों, संस्थाओं व कंपनियों को बेच कर रोजगार के अवसरों को खत्म किया जा रहा है. बीएसएनएल, एमटीएनएल, एलआईसी, कोल इंडिया, इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, ओएनजीसी, हेल, भेल, सेल, हाइवे, पाइपलाइन सहित देश के दर्जनों सरकारी संस्थानों को नीलाम किया जा रहा है जो बड़ी संख्या में नौजवानों को रोजगार देते थे.  “अग्निपथ योजना” लाकर मोदी सरकार ने नौजवानों के भविष्य पर बुलडोजर चलाने जैसा काम किया है.

देश की जनता का लाइफ लाइन भारतीय रेल से सिर्फ यातायात का रिश्ता नहीं है बल्कि यह करोड़ों नागरिकों को रोजी-रोटी-रोजगार देता है व उनके सपनों को भी ढोता है. इस शासन में रेलवे आज नीलामी के बाजार में रख दिया गया, एक-एक कर इसके प्लेटफार्म बेचे जा रहे हैं, ट्रेने बेचीं जा रही, रूट बेचा जा रहा, स्टेडियम, हॉस्पिटल व स्कूल बेचा जा रहा है. नए पदों का सृजन करना तो दूर, पहले से मौजूद पदों को ख़त्म किया जा रहा है. हालात तो यह है कि कर्मियों के अभाव में रेलवे सुचारू रूप से चलने में असमर्थ है. ओड़िसा की रेल दुर्घटना इस बात का मिशाल है. सिग्नल स्टाफ की कमी की वजह से दुर्घटना की सम्भावना के बारे में पहले से एलर्ट किया गया था लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया और इतनी बड़ी दुर्घटना हुई जिसमें सैकड़ों लोगों ने अपनों को खो दिया. 
सरकारी लफ्फाजी का आलम यह है कि जिस काल में पूरी सत्ता और मीडिया ने मिल कर नफरत का जहर आम लोगों के सामने परोसा, उस काल का नाम “अमृतकाल” दिया गया. जिस पीढ़ी की पीठ पर इस मोदी शासन की लाठी सबसे ज्यादा जोर से लगी है उस पीढ़ी का नाम “अमृतपीढ़ी” दिया गया है. विनाश और विध्वंस को विकास बताया जा रहा है. देशी-विदेशी पूँजी पर निर्भरता को “आत्मनिर्भर भारत” बताया जा रहा है. जहाँ सत्ता द्वारा हर दिन लोकतंत्र का कत्लेआम किया जा रहा है उसे “मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी” कहा जा रहा है. अडानी जैसे अपने दुलारे पूंजीपतियों के विकास को “सबका साथ-सबका विकास” कहा जा रहा है. 

एक तरफ मोदी सरकार नौजवानों के भविष्य पर बुलडोजर चला रही है, दूसरी तरफ इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले नौजवानों के साथ लाठी-डंडों से पेश आ रही है. साथ ही साथ इनके ऊपर फर्जी मुकदमें लगा कर जेल भेज रही है. अभी भी सैकड़ों नौजवान रोजगार के सवाल पर आन्दोलन करने की वजह से सलाखों के पीछे धकेल दिए गए हैं. “अग्निपथ योजना” के खिलाफ आन्दोलन कर रहे हजारों नौजवानों को कठोर धाराएं लगा कर जेल में डाल दिया गया है. उमर खालिद सहित सैकड़ों नौजवान जो नागरिकता कानून के खिलाफ आन्दोलन में शामिल थें, आज भी जेल में हैं. 

देश के लिए मेडल जीतने वाली महिला पहलवानों ने कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ब्रिजभूषण शरण सिंह के द्वारा यौन शोषण का आरोप लगाया लेकिन 3 महीने के बाद सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जाकर FIR दर्ज हुआ. अभी तक भाजपा सांसद की गिरफ़्तारी नहीं हुई है. पूरी सरकार अपने दुलारे बाहुबली सांसद को बचाने में लगी है. महिलाओं के प्रति सरकार के रवैये का यह मिसाल ही है कि जब महिलाएं अपने दम पर किसी मुकाम को हासिल कर भी लेती हैं तो सरकार उनके सम्मान, सुरक्षा व न्याय की गारंटी नहीं करा रही है और साथ ही साथ इनके आवाज़ को भी खामोश कर देना चाह रही है. 

हम वापस इस यूथ पार्लियामेंट से लौट कर जाएँगे और गाँव-गाँव, कस्बे, मोहल्ले में लौट कर बड़ी व निर्णायक लड़ाई की तैयारी करेंगे. भाजपा-आरएसएस के नफरत के कारोबार को पीछे धकेलते हुए इन्हें सत्ता से बेदखल करने के अभियान में भी जुट जाएँगे. 
यूथ पार्लियामेंट को अम्बेडकर विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर दीपा सिन्हा व शिवानी नाग, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर उमा, एक्टू के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी शंकर ने भी अपनी एकजुटता प्रदर्शित किया. 

यूथ पार्लियामेंट से पारित प्रस्ताव: 
1. आजादी के बाद पहली बार देश बेरोजगारी की इतनी बड़ी समस्या का सामना कर रहा है और कोई भी देश अपने नौजवानों को रोजगार दिए बिना तरक्की नहीं कर सकता. इसलिए यह यूथ पार्लियामेंट सरकार से मांग करती है कि रोजगार के सवाल पर संसद का विशेष सत्र बुला कर रोजगार देने का रोडमैप देश के सामने रखा जाय. 
2. मणिपुर पर संसद में सरकार बात करे, हिंसा की न्यायिक जाँच कराए, मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह को बर्खास्त करे.  
3. सरकार नफरत का कारोबार बंद करे और दंगा-फसाद करने वाले नफरती गुंडों को सलाखों के पीछे डाले. 
4. उमर खालिद सहित सभी सीएए आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को बिना शर्त रिहा करे. 
5. भीमा कोरेगांव के नाम पर सामाजिक कार्यकर्ताओं पर लादे गए फर्जी मुकदमा को वापस लिया जाय. 
6. गरीब बच्चों को शिक्षा से बेदखल करने वाली नई शिक्षा नीति 2020 वापस लो.  
7. सत्ता में आने से पहले सरकार ने नौजवानों से हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था. सरकार के नौ साल बीत गया है. इसलिए यह यूथ पार्लियामेंट सरकार से मांग करती है कि पिछले नौ साल में कितने नौजवानों को रोजगार मिला इसपर श्वेतपत्र लाया जाय. 
8. भगत सिंह रोजगार गारंटी एक्ट लागू किया जाय. 
9. सभी बेरोजगार नौजवानों को जब तक रोजगार नहीं मिल जाता, 10000 रुपया मासिक बेरोजगारी भत्ता दिया जाय. 
10. सरकार बिना किसी देरी के रेलवे सहित तमाम सरकारी कंपनियों को बेचने का फैसला वापस ले.
11. ‘अग्निपथ योजना’ वापस लिया जाय और सेना में खाली पड़े सभी पदों को अविलंब भरा जाय. 
12. ट्रेनों में सामान्य श्रेणी व स्लीपर श्रेणी की संख्या बढ़ाई जाय. 
13. रेलवे के 15 लाख ख़त्म किये जाने के फैसले को वापस लिया जाय. 
14. प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक, धांधली व आरक्षण घोटाले पर अविलंब रोक लगाई जाय.   

नीरज कुमार 
इंकलाबी नौजवान सभा (आरवाईए)
8130409383

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