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नौजवानों के सामने चुनौतियाँ और मार्क्सवाद विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला उत्साह के साथ संपन्न हुआ.



इंकलाबी नौजवान सभा (आरवाईए) उत्तरप्रदेश की दो दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला 7 - 8 सितंबर चमन वाटिका बस्ती में हुई. कार्यशाला के पहले सत्र में मार्क्सवाद विषय पर चर्चा हुई. जिसमें प्रशिक्षक भाकपा माले के राज्य स्थाई समिति के सदस्य कामरेड ओमप्रकाश सिंह ने अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कि मार्क्सवाद जड़ता का सिद्धांत नहीं है यह निरंतर गतिमान है. उन्होंने द्वंदात्मक भौतिकवाद और ऐतिहासिक भौतिकवाद पर विस्तार से बातचीत की और बताया कि मार्क्सवाद की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि चेतना से पदार्थ का निर्माण नहीं होता बल्कि पदार्थ से चेतना बनती है और निरंतर विकसित होती है. इसे वैज्ञानिक सिद्धांत के बतौर जाना जाता है.

दूसरे सत्र में ‘युवा आंदोलन चुनौतियां और संभावनाएं’ विषय पर चर्चा में जन संस्कृति मंच के महासचिव कॉमरेड मनोज सिंह और कॉमरेड अशोक चौधरी ने हिस्सा लिया. कॉमरेड मनोज सिंह ने कहा कि अपने देश और दुनिया में युवा को उम्र से परिभाषित किया जाता है लेकिन हम शहीदे आजम भगत सिंह की बात को मानते हैं जिन्होंने कहा था युवावस्था मानव जीवन का वसन्तकाल है। युवा वह है जिसमें उत्साह, उमंग और कुछ नया करने का जज्बा हिलोरे लेता है, जिसमें अन्याय के खिलाफ लड़ने का हौसला है और जो बेहतर जीवन का सपना संजोता है।

उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में सबसे नौजवान देश भारत है क्योंकि देश में 15-19 वर्ष की आयु की आबादी 27.2 फीसदी है। हर चौथा भारतीय युवा है। पिछले तीन दशक जनसंख्या के लिहाज से नौजवानों के रहे। वर्ष 1991 में देश में 22 करोड़ युवा थे जो 2011 में 33 करोड़ हो गए। इस वक्त युवाओं की आबादी 37.14 करोड़ है। अब युवा आबादी कम होने लगी है क्योंकि उनकी वृद्धि दर कम हो रही है। अगले दो दशक में युवा जनसंख्या वृद्धि 27.2 फीसदी से कम होते हुए 2036 तक 22.7 तक पहुंच जाएगी। फिर भी 2036 तक देश में युवाओं की संख्या 34.5 करोड़ होगी।
लेकिन इस दौरान इतनी बड़ी युवा आबादी की शक्ति, उर्जा को उपयोग देश के लिए नहीं हो पाया क्योंकि देश के हुक्मरान युवाओं के लिए शिक्षा, रोजगार का इंतजाम नहीं कर सके। आज उच्च शिक्षा में ग्रास इनरोलमेंट रेट सिर्फ 27.1 फीसदी है जिसे अब 50 फीसदी (महिलाओं के लिए 30 फीसदी) करने की बात कही जा रही है लेकिन सवाल उठता है कि यह 100 फीसदी क्यों नहीं होना चाहिए ? और ये अब तक क्यों नहीं हो सका ? इसकी वजह क्या है ? क्या जिस तरह की नीतियां सरकार बना रही है उससे आने वाले दिनों में यह लक्ष्य प्राप्त हो सकेगा ?

इसका जवाब नहीं है क्योंकि अभी भी शिक्षा का बजट जीडीपी का बमुश्किल एक फीसदी ही है। पिछले दस वर्ष की मोदी सरकार में शिक्षा के बजट बढ़ा नहीं है बल्कि इसमें परोक्ष कटौती की गयी है। ऐसे में उच्च शिक्षा में सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी दिवास्वप्न के सिवाय और कुछ नहीं है।
मोदी सरकार द्वारा बनायी गयी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, शिक्षा के कार्पोरेटाइजेशन और भगवाकरण की नीति के सिवाय और कुछ नहीं है। शिक्षा का कार्पोरेटाइजेशन शिक्षा से गरीब-कमजोर लोगों को और अधिक वंचित कर रहा है। आज देश में सरकारी विश्वविद्यालयों से दूना प्राइवेट विश्वविद्यालय स्थापित करवाए जा रहे हैं जहां देश की गरीब युवा पढ़ने के बारे में सोच भी नहीं सकते। सरकारी विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में भी पढाई महंगी कर देश के सामान्य लोगों के घरों के युवाओं को शिक्षा से वंचित करने की ही साजिश रची जा रही है।

नई शिक्षा नीति देश की विविधता को नजरअंदाज कर उसका अति केन्द्रीयकरण किया जा रहा है। शिक्षा को पहले राज्य विषय से समवर्ती सूची में लाया गया और केन्द्र इस पर पूरा एकाधिकार जमा रहा है। नई शिक्षा नीति 2020 शिक्षा क्षेत्र में केंद्र के हस्तक्षेप को विस्तृत करने की ही योजना है। प्रवेश परीक्षाओं के लिए केन्द्रीय संस्था बनाना, शिक्षकों के योग्यता के लिए केन्द्रीकृत पाठ्यक्रम सहित तमाम ऐसे उपाय किए जा रहे हैं जो देश की विविधता और सामाजिक न्याय के पहलुओं को कमजोर करता हैं। प्रवेश परीक्षाओं में भ्रष्टाचार, धांधली, अपारदर्शिता, मनमानापन नए-नए कीर्तिमान बना रही है।
उन्होंने कहा कि जब देश युवा हो रहा था तभी युवाओं के बारे में एक ठोस नीति बनाने की जरूरत थी लेकिन 1985 तक युवाओं के बारे में अलग से सोचा ही नहीं गया। 1985 में पहली बार युवा मामले व खेलकूद का विभाग बना। तीन वर्ष बाद 1988 में राष्ट्रीय युवा नीति बनी जिसमें युवााओं के अवसर बढ़ाने, उनकी क्षमता का विकास करने और उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए जरूरी उपाय करने की बात कही गयी। वर्ष 1996 में युवाओं के लिए 2020 तक नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान बना। फिर 2003 में युवाओं की आयु 13-35 वर्ष मानते हुए राष्ट्रीय युवा नीति बनी जिसमें युआओं के आल राउंड डेवलपमेंट की बात कही गयी। ग्यारह वर्ष बाद 2014 में फिर नई राष्ट्रीय युवा नीति बनी जिसमें युवाओं की आयु 15-29 मानते हुए उनके लिए होलिस्टिक विजन का सपना दिखाया गया लेकिन मौजूदा निजाम का होलिस्टिक विजन दरअसल युवाओं को कुशल मजदूर और स्वरोजगारी के अलावा और किसी रूप में देख ही नहीं पाता। सात वर्ष बाद प्रस्तावति नई राष्टीय युवा नीति 2021 लच्छेदार भाषा में (अनलॉक द पोंटेशियल आफ द यूथ टू एडवांस इंडिया) अपने इसी विजन को रखता है। भाजपा का 2024 का चुनावी घोषणा पत्र भी इसी की मुनादी करता है कि ‘पीएम मुद्रा योजना के जरिए युवाओं को रोजगार व स्वरोजगार के लिए ऋण देने, पीएम कौशल विकास योजना के तहत 1.4 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षण’ दिया गया। यहां पर केन्द्र व राज्यों में खाली पदों को भरने की कोई बात नहीं की गई है।

इन्हीं नीतियों के कारण आज युवा भारत बेरोजगार भारत बन गया है। अन्तर राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि भारत में 29 फीसदी यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट बेरोजगार हैं। देश के बेरोजगारों में 80 फीसदी युवा हैं। वर्ष 2000 में युवाओं में बेरोजगारी 35.2 फीसदी थी जो 2022 में बढ़कर 65.7 फीसदी हो गयी। हर वर्ष 70 से 80 लाख युवा रोजगार की लाइन में खड़े हो रहे हैं। अगले दस वर्ष में आठ से दस करोड़ लोग रोजगार के लिए इंतजार करते मिलेंगे। आईएलओ बढ़ती बेरोजगारी के साथ-साथ रोजगार की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाता है और कहता है कि बहुत कम मजदूरी वेतन मानदेय पर लोग काम करने को विवश हैं। रोजगार देने वाले 90 फीसदी अनौपचारिक हैं। पूंजी उत्पदान के बजाय सेवा क्षेत्र में लग रही है। कृषि क्षेत्र में रोजगार घट रहा है। आज कृषि क्षेत्र में रोजगार 60 फीसदी से घटकर 40 फीसदी ही रह गया है। श्रम बल भागीदारी गिर रही है, बेरोजगारी की दर बढ़ रही है।

उन्होंने राजनीति में भी युवाओं के हिस्सेदारी पर बात करते हुए बताया कि लोकसभा सदस्यों की औसत उम्र 55 वर्ष और राज्यसभा की औसत उम्र 65 वर्ष है। इसी गर्मियों में हुए लोकसभा चुनाव में कुल 97 करोड़ में 29 वर्ष तक के युवा मतदाताओं की संख्या 21 करोड़ से अधिक थी। एक तरफ प्रधानमंत्री लाल किले से भाषण में कहते हैं कि एक लाख युवाओं को राजनीति में लाना है लेकिन वे और उनकी पार्टी अब तक यह जवाब नहीं दे सकी है कि यूनिवर्सिटी व कालेज में छात्र संघ का चुनाव प्रतिबंधित कर और हर तरह की छात्र गतिविधियों पर रोक लगाकर वे किस तरह से राजनीति में युवाओं की भागीदारी बढ़ाना चाहते हैं। वे यह तो चाहते हैं कि शाखा में युवा आएं लेकिन कैम्पस में वे अपनी बात न कहें और न कोई संगठन बनाएं। शिक्षा परिसरों में युवाओं की आवाज को किस तरह से इस दौर में कुचला गया है , सभी जानते हैं।


मनोज सिंह ने कहा कि किसी भी देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि जिस देश में सबसे अधिक युवा हैं, वही देश दुनिया में सबसे अधिक युवा आत्महत्या वाला देश बन जाए। देश में आत्महत्या के सभी मामलों में 40 फीसदी आत्महत्या के केस 30 वर्ष से कम आयु के लोगों के हैं। युवाओं की आत्महत्या वैश्विक औसत से दोगुनी है। वर्ष 2014 से युवा आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। युवा आत्महत्या के ज्यादातर मामले बेरोजगारी के कारण है। दो वर्ष पहले मोदी सरकार ने संसद में बताया था कि 2018 से 2020 तक 9,140 लोगों ने आत्महत्या की है। साल 2018 में 2,741, 2019 में 2,851 और 2020 में 3,548 लोगों ने बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या की है। 2014 की तुलना में 2020 में बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

आईसी-3 सम्मेलन में पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया कि देश में छात्र आत्महत्या महामारी बन गई है। देश में छात्र आत्महत्या चार फीसद बढी़ है जो कुल आत्महत्या में दो फीसदी की वृद्धि से दो गुनी है। महाराष्ट्र, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में छात्र आत्महत्या के केस सबसे अधिक सामने आए हैं।

उन्होंने देश में बढ़ती असामनता, अमीरपरस्त नीतियां, सरकारों की बढ़ती फिजूलखर्ची का जिक्र करते हुए कहा कि आज देश में युवा असंतोष बढ़ रहा है। युवा असंतोष की अभिव्यक्ति विभिन्न तरीकों से व्यक्त हो रही है। हाल के लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी के सवाल पर युवाओं का असंतोष मोदी सरकार के खिलाफ व्यक्त हुआ। इसके पहले बिहार और यूपी के चुनाव में भी बेरोजगारी के मुद्दें पर युवाओं की आवाज मुखर हुई। उन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर अब तक के युवा आंदोलनों की चर्चा करते हुए कहा कि आज जरूरत है कि हम युवाओं को संगठित कर देश के भविष्य और सपने को मृत्युग्रस्त बनाने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ाई को निर्णायक बनाएं।
 
इस दौरान आए सवालों पर बातचीत करने के लिए कामरेड अशोक चौधरी और ओमप्रकाश सिंह ने भी हस्तक्षेप किया जिसमें प्रमुख सवाल के बतौर युवा आंदोलन को संगठित करने में शिक्षित बेरोजगार नौजवानों के अलावा शिक्षा से भी वंचित नौजवान जो गांव में बड़े पैमाने पर रहते हैं या शहरों में जाकर मजदूरी करते हैं उनकी चिंताओं और उनको संगठित करने में आ रही समस्याओं पर चर्चा हुई.
 
तीसरे सत्र में वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा हुई और संगठन की स्थिति पर बात हुई . जिसमें 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण घोटाले पर प्रमुख रूप से अभियान चलाते हुए बड़े आंदोलन संगठित करने की योजना बनी. जिसमें 69000 शिक्षक भर्ती आरक्षण घोटाला पर हाईकोर्ट के फैसले को शीघ्र लागू करने, दोषियों को सजा देने, आरक्षण घोटाले से हुए लगभग ₹5000 करोड़ नुकसान की भरपाई करने, इस घोटाले के जिम्मेवार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग प्रमुख है।


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